Thursday, March 19, 2009

ख्वाहिश



मैं चाहता हूं

तेरे उलझे हुए ये दिन
सुलझा दूं.

गीली आंखों में जो गुज़रती हैं
बेतरतीब-सी जो अब उगती हैं
तेरी रातों को
सलीके से उगा दूं, करीने से सजा दूं.

ये धूप का आधा टुकड़ा
अटका पड़ा है जो पर्दे में कहीं
तुझ तक खींच लाऊं
तेरे चेहरे पे बिखेर दूं.

कुछ रेशमी फ़ुहारें
कहीं पास से गुज़रें जो
रूख मोड़ दूं उनका
तेरे छत का मैं पता दूं.

खिले सूरजमुखी सी वो हंसी
छोड आई है तू जो बचपन में कहीं
ढूंढ लाऊं मैं वो कहीं से
तेरे होठों पे सजा दूं.

तेरी आंखों की नमी
झलक जाती है जो कोरों से कभी
भूल बैठी है वो शायद
उसे आने-जाने के सलीके सिखा दूं.

वो हरेक नक़्श
तेरे ग़म का जो सबब है
इक-इक कर के मिटा दूं.

मैं चाहता हूं.

9 comments:

Rukaiya said...

कुछ रेशमी फ़ुहारें
कहीं पास से गुज़रें जो
रूख मोड़ दूं उनका
तेरे छत का मैं पता दूं.

खिले सूरजमुखी सी वो हंसी
छोड आई है तू जो बचपन में कहीं
ढूंढ लाऊं मैं वो कहीं से
तेरे होठों पे सजा दूं

WAH !!! LAJAWAAB !!!

bahut dino baad phir se aapka likha padh kar achha laga
behtreen nazam !!

कुश said...

आज का दिन कुछ खास लगता है.. बेशुमार नज्मे मिल रही है.. खैर शुक्र है आपने अपनी खबर तो ली.. और वो भी शानदार तरीके से.. उम्मीद है ये मौसम अब हमेशा रहेगा..

meeta said...

आपने तो दिल खुश कर दिया....लगता था की साल तो गुजर ही जायेगा आपका लिखा पढने में....वैसे आपने अपनी खुद की आवाज़ में भी पोस्ट की होती तो और खुश हों जाते हम....ख्वाहिशे पूरी हों ऐसी कामना आपके लिए .. :)

डॉ .अनुराग said...

खुदा कसम .दूसरी बार इतनी जल्दी ये कसम खानी पड़ेगी सोचा नहीं था.....कुश के दरवाजे से अगला दरवाजा तुम्हारा था..नज़्म से भीगा हुआ ..लगा जैसे कुछ देर बैठ इसकी नमी महसूस कर लूँ.....आते रहो यार ...हमें भी हौसला मिलेंगा लफ्जों के बीच कुछ देर बैठने से....

Priyesh said...

aap sabon ka tah-e-dil se shukriyaa !!! :)

pallavi trivedi said...

तेरी आंखों की नमी
झलक जाती है जो कोरों से कभी
भूल बैठी है वो शायद
उसे आने-जाने के सलीके सिखा दूं.

क्या बात है....कई दिनों तक याद रहेगी ये नज़्म!

हरकीरत ' हीर' said...

ये धूप का आधा टुकड़ा
अटका पड़ा है जो पर्दे में कहीं
तुझ तक खींच लाऊं
तेरे चेहरे पे बिखेर दूं....waaah...!!

bhot dino bad lga kuch accha padha hai...bdhai...!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

aapke chahne me aapke khubsurat khayal jhalakte hai....boht sunder kavita ya kahu sunder ahsaas...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रियेश जी
कमाल का लिखते हैं यार , आप तो !

खिले सूरजमुखी सी वो हंसी
छोड आई है तू जो बचपन में कहीं
ढूंढ लाऊं मैं वो कहीं से
तेरे होठों पे सजा दूं.

भाव शिल्प इतनी ख़ूबसूरती के साथ !
पोस्ट अब तो बदलें हुज़ूर !
ताज़ा नज़्म लिखने पर सूचित कर पाएं तो मेहरबानी मानूंगा ।

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं