रोज़ सुबह
उसके तकिये पर
कुछ सूखे ख्वाब मिलते हैं
सफ़ेद धब्बों की शक्ल में
वो रोज़ ग़िलाफ़ों को धोती है
धोकर धूप में सुखाती है
और फ़िर दिन-भर
अपने ख्वाब का इन्तज़ार करती है
आज का दिन भी खाली गया है...
आज फ़िर से उसकी रात
कमरे की छत से टंके हुये
रेडियम के चमकते सितारे देखते हुये कटेगी
आज की रात फ़िर से
उसकी बंद आंखों से
कुछ ख्वाब बहेंगे
और सुबह
तकिये पर
सफ़ेद धब्बों की शक्ल में मिलेंगे
11 comments:
Khubsurat !!!!!!!!! :)
वाह क्या ख्याल है.. बहुत उम्दा
yun hi hai...to aur bhi acchhha hai....
bina jikr ke aansoo ki baat....koi thahri hui jaise raat ki baat.....achchi hai...
आज की रात फ़िर से
उसकी बंद आंखों से
कुछ ख्वाब बहेंगे
और सुबह
तकिये पर
सफ़ेद धब्बों की शक्ल में मिलेंगे
बहुत खूब ...
khoobsoorat khyal..
likhte rahe..
ऐसा लगा जैसे गुलज़ार को पढ़ रहा हूँ.....बस सीधी दिल में उतर गई है......
इस युं ही पे इतने अच्छे भाव...क्या बात है जनाब.
kahanee kuch aage badhaaiye
bahut khoobsurat
आज फ़िर से उसकी रात
कमरे की छत से टंके हुये
रेडियम के चमकते सितारे देखते हुये कटेगी
आज की रात फ़िर से
उसकी बंद आंखों से
कुछ ख्वाब बहेंगे
और सुबह
तकिये पर
सफ़ेद धब्बों की शक्ल में मिलेंगे
Wah bhot khooooob....!
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