पिछले कई दिनों से दिल में ये बात आ रही थी कि कुछ लिखूं अपने blog पर. असल में मेरा खुद के बारे में ये मानना है कि मैं एक अच्छा लिखने वाला (अपने लिये ’लेखक’ शब्द सर्वथा अनुपयुक्त लगता है) से कहीं ज्यादा बेहतर एक पाठक और एक श्रोता हूं. अपने मन की बातों और ख्यालों को शब्दों की शक्ल पहनाकर और सजा-संवार कर प्रस्तुत करने में मैं खुद को उतना सहज नहीं पाता. फ़िर भी, अपनी कमज़ोरियों को अच्छी तरह जानते हुये भी आज से कुछ लिखने का प्रयास शुरू कर रहा हूं.
जब blog पर लिखने के बारे में पहली बार सोचा तो सबसे पहले ये ख्याल ज़हन में आया कि blog का शीर्षक क्या रखूं. कई शब्द और शब्दों की लड़ियां ज़ेहन में घूम गये. तभी सहसा मुझे अपने जीवन की सबसे पहली पढ़ी आत्मकथा स्मरण हो आयी. पान्डेय बेचन शर्मा ’उग्र’ की आत्मकथा - ’अपनी खबर’. बहुत मुमकिन है कि आपमें से कईयों ने ’उग्र’ जी का नाम भी ना सुना हो. उनकी आत्मकथा पढ़ने तक मैनें भी बस उनका नाम ही सुना था, कोइ रचना नहीं पढ़ी थी. २००२-२००३ की बात है. उन दिनों इन्डिया टुडे ग्रुप साल में एक बार हिन्दी साहित्य विशेषांक प्रकाशित करते थे जिसमें समकालिन लेखकों और कवियों की कुछ बहुत ही अच्छी और चुनिन्दा रचनाएं होती थीं. २००४ या २००५ के बाद से मैनें बुक स्टौल्स पर ये विशेषांक ढ़ूंढ़नें की बहुत कोशिश की लेकिन नहीं मिलीं. इन्डिया टुडे ग्रुप वालों ने शायद अब इसे छापना बंद कर दिया है. शायद उन्हें भी हिन्दी साहित्य छापना निरर्थक लगने लगा है.
खैर, मैं बात ’अपनी खबर’ की कर रहा था. साहित्य विशेषांक के किसी अंक में कुछ समकालीन लेखकों से ५ सर्वश्रेष्ठ आत्मकथा चुनने और उसपर अपनी टिप्पणी देने को कहा गया था. उनमें जो ४ आत्मकथायें, जिन्हें सबसे ज्यादा लेखकों ने चुना था, वो थे - बच्चन की ’क्या भूलूं क्या याद करूं’, चर्ली चैप्लिन की आत्मकथा, महात्मा गांधी की ’माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रुथ’ और ’उग्र’ की ’अपनी खबर’. इस लेख को पढ़ने के कुछ ही दिनों बाद मुझे ’अपनी खबर’ पढ़ने को मिली और तब से अब तक मैं उसे करीब १०-१२ बार पढ़ चुका हूं. पेपर बैक में एक बेहद पतली सी और छोटी सी किताब है जिसकी खासियत उसकी बेबाक़ी है. ’उग्र’ जी ने जिस निर्भिकता से अपने जीवन की सच्चाईयों को सबके सामने रखा है वैसा साहित्य में बहुत कम देखने को मिलता है. अपनी ज़िन्दगी और उसके गिर्द आने वाले लोगों के बारे में ’उग्र’ जी ने बिना किसी लोक-लाज और भय के परतें दर परतें खोली हैं.
यदि आपमें आत्मकथा पढ़ने की दिलचस्पी हो तो ये किताब जरुर पढ़ें. किताब की प्राईस करीब... इस किताब की मेरी खरीदारी भी कम रोचक नहीं है. मैं उस वक़्त पटना के बोरिंग कैनाल रोड में रहता था. हर साल की तरह पाटलिपुत्रा कोलोनी में बुक फ़ेयर (पुस्तक-मेला) लगा हुआ था. मैं मेले के खुलने के पहले दिन ही पहुंच गया. घूमते घूमते राज कमल प्रकाशन के स्टाल के चक्कर लगा रहा था कि बिलकुल आगे की क़तार में ’अपनी खबर’ सज़ी हुई दिखी. साहित्य विशेषांक में आत्मकथा पर पढ़ा लेख स्मरण हो आया और मैनें एक प्रति उठा ली और देखने लगा. एक आम भारतीय बेरोज़गार की तरह मैं भी मुख-पृष्ठ देखने के बाद सीधा उस जगह को ढ़ूंढ़ने लगा जहां किताब का दाम छपा हुआ करता है. दाम पढ़ा तो सहसा यक़ीन नहीं हुआ - रू ३.५० मात्र. मैने ये सोचकर कि कहीं उस प्रति में मिस-प्रिंट ना हो, दूसरी प्रति उठाकर देखी तो वहां भी रु ३.५० ही दिखा. मन में खुशी हुई दाम देखकर जो वाज़िब था. एक प्रति लेकर मैं बिलिंग काउंटर पर पहुंचा. बिलिंग करने वाले को भी थोड़ा आश्चर्य हुआ छपा दाम देखकर. कम्प्यूटर में थोड़ी बहुत छानबीन करने के पश्चात साहब ने मुझसे रु ३.५० लेकर किताब मुझे दे दी. किताब के साथ साथ उसने जो मुस्कुराहट मेरे चेहरे पर डाली थी, उसका अर्थ मैं ५-६ दिन बाद जान पाया जब मेरा फ़िर से बुक फ़ेयर जाना हुआ और घूमते हुये फ़िर उसी स्टाल पर पहुंचा. आगे की कतार से ’अपनी खबर’ उठाई तो सहसा नज़र उसके दाम पर पड़ी. रु ३.५० की जगह एक स्टिकर लगाकर बड़ी सफ़ाइ से छापा गया था - मूल्य - रु ३५.०० मात्र.
8 comments:
Priyesh...Bahut dino baad aapko padh kar achha laga !!! sabse pahele to apne blog ke title ki tareef kabul kare bahut aam se to aalfaz lakin padhne wale ke man mein kitni kuch jigyasa peda kar jate hain ..ab mujhey bhi lag raha hai ki "ugrji" aatmkath padhi jani chahiye ;;;;
" अपनी खबर" किसे होती है!!! फिर भी अगर रखनी शुरू कर दी है तो सिलसिला जारी रखना. और अगर कही और बुक फेर लगा हो तो हमारे लिए भी एक कॉपी लेके भेज देना. :)
सच कहु तो आपको ब्लॉग पे देखकर बहुत खुशी हुई.. अवसर मिला तो अवश्य वो पुस्तक खरी दूँगा.. अभी आपको नये ब्लॉग हेतु शुभकामनाए.. निरंतर लिखते रहे..
3.50 hi daam thaa...to ek humey bhi bheji hoti...blog per aapko dekh kar khushi hui...shubhkaamnaayen..niyamit likhiye...
देखिये हमारी पसंद एक ओर जगह आकर मिल गयी,मुझे भी ढेरो आत्मकथा पढने का शौक है ओर इस किताब को भी बांच चुका हूँ...आज तक अगर किसी आदमी की आत्मकथा से बोर हुआ हूँ तो वो है जवाहर लाल नेहरू ...उन्होंने कुछ भी सच नही लिखा... .
haan ek bat aor word verification hata de..
एक अच्छे लेखक के लिए एक अच्छा पाठक होना भी बहुत जरुरी है..आप तो सर्वगुण सम्पन्न हैं-लिखिये जनाब. :)शुभकामनाऐं.
उत्साहवर्धन के लिये आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया!!!!!!!!
very nice lekinKuchh adhura sa laga........
Post a Comment